सजदा (या सिजदा) और पैबोस एक प्रकार की प्रथा थी जिसे ग़यासुद्दीन बलबन ने शुरू किया था। बलबन गुलाम वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। सजदा और पैबोस फारसी प्रथाएं थीं।
ग़यासुद्दीन बलबन – संक्षिप्त परिचय
ग़यासुद्दीन बलबन एक महान और “मामलुक” वंश (गुलाम वंश) के सबसे शक्तिशाली सुल्तानों में से एक थे। ग़यासुद्दीन बलबन का असली नाम उलुग खान (शक्तिशाली भगवान) था। उसने 1266 ई से 1286 ई तक दिल्ली पर शासन किया।
बलबन एक गुलाम व्यापारी(व्यापारी जो गुलामों को खरीदते और बेचते हो) से इल्तुतमिश द्वारा खरीदा गया दास था। सुल्तान नज़ीर-उद-दीन ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। बलबन ने सुल्तान नज़ीर-उद-दीन की बेटी से शादी की। वह मलिक की स्थिति से खान और खान से सुलतान बना।
सजदा (या सिजदा) का अर्थ क्या है?
सजदा का अर्थ है, सुल्तान के प्रभाव को स्वीकार करने के लिए घुटने पर बैठकर सम्राट के सामने सर झुकाना।
पैबोस का अर्थ क्या है?
पैबोस का अर्थ सुल्तान के पैरों को चुम कर उसकी शक्ति की सराहना है । पैबोस की शुरुआत पर्शिया(ईरान) से हुई थी जहा व्यक्ति को सुल्तान के आगे झुक कर उनके पाँव चूमने होते थे।
बलबन ने सजदा और पैबोस को क्यों लागू किया?
बलबन ईश्वरीय राज में विश्वास करता था। वह खुद को पृथ्वी पर भगवान के द्वारा भेजा गया अधिकारी समझता था। उनका दरबार फारसी शाही दरबार की तर्ज पर आयोजित किया गया था। कोई भी उसके दरबार में मुस्कुराने की हिम्मत नहीं कर सकता था।
रूढ़िवादी मुसलमान इन रिवाजों के खिलाफ थे। उन्होंने इन रीति-रिवाजों का विरोध किया। लेकिन, वे बलबन के सामने बेबस हैं।
पिबोस और सजदा का उन्मूलन
पायबोस और सजदा अमानवीय प्रथाएं थीं। तीसरे मुगल सम्राट, बादशाह अकबर ने इन अमानवीय प्रथाओं को समाप्त कर दिया।
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