छठी शताब्दी ईसा पूर्व में उत्तर भारत में सोलह महाजनपदों के साथ ही साथ दस गणराज्यों का भी अस्तित्व था। धीरे धीरे इनमें से कुछ राज्यों में राज्य की विस्तार नीति को अपनाना प्रारंभ किया। अतः अंत में केवल चार बड़े राज्य ही शेष रह गए।

1- मगध

2- वत्स

3- कोसल

4- अवंती

इन चारों राज्यों में भी पारस्परिक संघर्ष हुआ करते थे। और अंत में मगध राज्य ने इन सभी को अपने राज्य में आत्मसार कर लिया और एक प्रमुख साम्राज्य के रूप में बना रहा ।

मगध महाजनपद प्रारंभ में केवल एक सामान्य जनपद था। जिसकी राजधानी “गिरिव्रज या राजगृह” थी।

हर्यक वंश

मगध के उत्थान में हर्यक वंश का विशेष महत्व था। हर्यक वंश के प्रमुख शासकों में प्रथम शासक बिम्बिसार था।

बिम्बिसार

बिम्बिसार से पूर्व हर्यक वंश का शासक कौन था ये स्पष्ट नहीं है। बिम्बिसार से पहले अथवा उसके पूर्वजों के विषय में कोई भी प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।

बिम्बिसार का प्रारंभिक जीवन

बिम्बिसार के प्रारंभिक जीवन के विषय में निश्चय साक्ष्य उपलब्ध न होने के कारण प्रामाणिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन इतना निश्चित है कि यह मगध का पहला शासक था जिसने साधारण से मगध राज्य को एक विस्तृत साम्राज्य का रूप प्रदान किया। बौद्ध ग्रंथ महावंश में यह विवरण मिलता है –

” बिम्बिसार को उसके पिता भट्टिय ने उस समय राज्य का उत्तराधिकारी बनाया जब उसकी आयु मात्र 15 वर्ष की थी। बिम्बिसार की उपाधि श्रेणीय अथवा श्रेणिक थी”

बिम्बिसार ने अपने पिता से जिस राज्य को प्राप्त किया उसे अपनी कुशलता और वीरता से एक साम्राज्य के रूप में परिवर्तित किया।

साम्राज्य विस्तार के लिए बिम्बिसार द्वारा अपनाई गई नीतियां –

बिम्बिसार का उदय उस समय हुआ जब उत्तर भारत में अपनी – अपनी शासन सत्ता स्थापित करने की प्रतिस्पर्धा चल रही थी। बिम्बिसार ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए तीन नीतियों का पालन किया।

  1. वैवाहिक संबंधों की नीति
  2. युद्ध की नीति
  3. मित्रता की नीति

1) वैवाहिक संबंधों की नीति-

बिम्बिसार एक सफल कूटनीतिज्ञ था। जिसने तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों का अध्ययन किया और वैवाहिक संबंधों की नीति पर विशेष जोड़ दिया। अपनी राजनैतिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए बिम्बिसार ने अनेक वैवाहिक संबंधों को स्थापित किया। बौद्ध ग्रंथ महावग्ग में बिम्बिसार की रानियों की संख्या 500 बताई गई है।

लेकिन ये वर्णन अतिशयोक्ति पूर्ण लगता है। लेकिन इतना अवश्य है कि बिम्बिसार ने कई विवाह किए थे। जिसका वर्णन निम्नलिखित है-

बौद्ध ग्रंथ धम्मपिटक के अनुसार

✓ कोसल वंश के शासक महाकोसल की पुत्री कोसलादेवी से बिम्बिसार ने विवाह किया। इस विवाह से बिम्बिसार को एक लाख वार्षिक आय वाला काशी ग्राम दहेज में प्राप्त हुआ था।

✓ वैशाली के लिच्छवी शासकों का छठी शताब्दी ईसा पूर्व में एक महत्वपूर्ण स्थान था। जैन ग्रंथ के अनुसार – ” बिम्बिसार ने लिच्छवी शासक चेटक की पुत्री चेल्लना के साथ विवाह किया था।”

इस विवाह से बिम्बिसार वैशाली जैसे महत्वपूर्ण गणराज्य का संबंधी हो गया।

✓ साहित्य में बिम्बिसार के तीसरे विवाह के संबंध में यह ज्ञात होता है कि भद्र देश की रानी क्षेमा के साथ बिम्बिसार ने विवाह किया था।

2) युद्ध की नीति –

बिम्बिसार ने इस नीति के अंतर्गत अपने पड़ोसी राज्य को अपने अधीन कर लिया। अंग के शासक वृहद्रथ को पराजित कर उसे मार डाला। इस संबंध में जैन ग्रंथ भगवतीसूत्र का कथन है –

” बिम्बिसार ने अंग को अपने राज्य में मिलाने के पश्चात वहां का शासन का भाग अपने पुत्र अजातशत्रु को सौंप दिया।”

इस अंग विजय से मगध की सेना में विस्तार हुआ।

3) मित्रता की नीति –

प्राचीन काल में राजा के लिए अपनी राजनैतिक स्थिति सुदृढ़ करने का महत्वपूर्ण साधन मित्रता थी। ऐसे राज्य मित्र राज्य कहलाते थे। बिम्बिसार ने भी अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कई राज्यों के साथ मित्रता के संबंध स्थापित किए। ऐसे मित्र राज्यों में अवंती और गांधार का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है –

बौद्ध ग्रंथ से यह विवरण प्राप्त होता है कि –

“अवंती नरेश चंद्रप्रद्योत जब पांडु रोग से ग्रस्त था और अंतिम सांसे ले रहा था तब मगध नरेश बिम्बिसार ने अपने राजकीय वैद्य जीवक को उनका इलाज करने के लिए भेजा था जिससे अवंती नरेश स्वस्थ हो गए।”

इस प्रकार बिम्बिसार ने सूझ बूझ से एक शक्तिशाली राष्ट्र को अपना मित्र बना लिया।

✓ गांधार नरेश के साथ बिम्बिसार के मित्रवत संबंध स्थापित हुए जिसका प्रमाण बौद्ध ग्रंथ से मिलता है –

“बिम्बिसार ने बुद्ध के उपदेशों से अंकित एक ताम्रपत्र गांधार नरेश पुक्कुसाती को भेजा था। गांधार नरेश ने भी अपना एक पत्र और एक दूत बिम्बिसार के पास भेजे थे ।”

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