बिम्बिसार का साम्राज्य विस्तार और धर्म नीति –

बिम्बिसार एक वीर और कूटनीतिज्ञ शासक था जिसने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के पश्चात उसके प्रशासन पर बल दिया।

बौद्ध ग्रंथ महावंश में – “मगध के गावों की संख्या 80,000 बताई गई है।”

महावंश में वर्णन मिलता है – ” उसकी राज्य सभा में 80,000 ग्रामों के प्रतिनिधि भाग लेते थे। “

बौद्ध ग्रंथों में वर्णित है कि उसने अपने शासन के संचालन के लिए विभिन्न पदाधिकारियों की नियुक्ति की थी। जिसमें – उपराजा, मांडलिक सेनापति, व्यवहारिक महामंत्री, ग्राम भोजक प्रमुख थे।

शासन का प्रधान राजा होता था। बिम्बिसार की दंडनीति काफी कठोर थी। किसी भी अपराध के लिए कठोर कारावास से लेकर मृत्यु दंड की व्यवस्था थी। इसी कठोर व्यवस्था के कारण बिम्बिसार की प्रशासनिक व्यवस्था सुदृढ़ हुई।

बिम्बिसार की धर्म नीति –

बिम्बिसार किस धर्म को मानने वाला था इस संबंध में विद्वानों में मतभेद है। सभी विद्वान अलग – अलग बात कहते है। बिम्बिसार बौद्ध धर्म को मानता था, इस तथ्य की पुष्टि बौद्ध ग्रंथ विनय पत्रिका से होती है।

विनय पत्रिका के अनुसार – ” महात्मा बुद्ध से मिलने के पश्चात उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया और महात्मा बुद्ध को वेलुवन नामक उद्यान दान में दिया था। “

यद्यपि यह तथ्य मान्य है कि बिम्बिसार बौद्ध धर्म को मानता था किंतु यह तथ्य भी मान्य है कि वह अन्य धर्मों के प्रति उदार भाव रखता था।

जैनग्रंथ परिशिष्टपर्वन के अनुसार – ” बिम्बिसार अपनी रानी चेलना व अन्य संबंधियों के साथ महावीर स्वामी के पास आया और श्रद्धा व्यक्त की। “

इस प्रकार बिम्बिसार ने अपने साम्राज्य में एक ऐसा वातावरण उत्पन्न किया जिसमें उसकी पूरी प्रजा शांतिपूर्वक रह सके। वह एक शांतिप्रिय और कुशल शासक था लेकिन उसका अंतिम समय कष्ट से बीता बौद्ध ग्रंथ महावंश में इसका विवरण मिलता है।

” बिम्बिसार ने 52 वर्ष तक शासन किया उसके उपरांत उसके पुत्र अजातशत्रु ने उसे बंदी बनाकर उसका राज्य छीन लिया। “

अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार की हत्या कर दी और स्वयं राजा बन गया। बिम्बिसार ने 543 ईसा पूर्व से लेकर 491 ईसा पूर्व तक शासन किया।

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