गांधी-इरविन पैक्ट 5 मार्च 1931 को महात्मा गांधी और भारत के वायसराय लॉर्ड इरविन द्वारा हस्ताक्षरित एक राजनीतिक समझौता था। लंदन में दूसरे गोलमेज सम्मेलन से पहले इस पर हस्ताक्षर किए गए थे।
अक्टूबर 1929 में लॉर्ड इरविन ने अनिर्धारित भविष्य में ब्रिटिश कब्जे वाले भारत को प्रभुत्व देने को कहा। साथ-ही-साथ संविधान पर चर्चा करने के लिए एक गोलमेज सम्मेलन की घोषणा की।
सरोजिनी नायडू ने गांधी और लॉर्ड इरविन को “द टू लीडर्स” के रूप में वर्णित किया, जिनकी आठ बैठकें हुईं जो कुल मिलकर 24 घंटे तक चला। गांधी इरविन की ईमानदारी से प्रभावित थे।
गांधी-इरविन संधि की शर्तें
इस समझौते में, लॉर्ड इरविन ने स्वीकार किया है कि –

- हिंसा को छोड़कर सभी प्रकार के अपराधों से संबंधित सभी अभियोगों को हटाना
- भारतीयों को तट के किनारे नमक बनाने का अधिकार दिया जाएगा।
- भारतीय शराब और विदेशी कपड़ों की दुकानों के सामने धरना दे सकते हैं।
- आंदोलन के दौरान इस्तीफा देने वालों को उनके पदों पर बहाल किया जाएगा।
- आंदोलन के दौरान जब्त की गई संपत्ति वापस कर दी जाएगी।
गांधीजी ने कांग्रेस से निम्नलिखित शर्तें स्वीकार कीं –
- सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित कर दिया जाएगा।
- कांग्रेस दूसरे गोलमेज सम्मेलन में शामिल होगी।
- कांग्रेस ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार नहीं करेगी।
- गांधीजी पुलिस की ज्यादतियों की जांच करने की मांग करेंगे।
गांधी-इरविन समझौते पर अंग्रेजों का दृष्टिकोण
भारत और ग्रेट ब्रिटेन में कई ब्रिटिश अधिकारी इस समझौते के विचार से नाराज थे वो भी उस पार्टी से जिसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश राज का विनाश था।
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